अंडमान सागर
इंडो-पैसेफिक का भारतीय प्रवेश द्वार
शांग्री-ला डॉयलाग 2018 में अपने भाषण में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ” खुले, स्थिर, सुरक्षित और समृद्ध इंडो-पैसिफिक ” बनाने की भारत की आकांक्षा को बहुत विस्तार से पेश किया था। जिससे इस पूरे इलाके में दुनिया के साझा हितों को किसी भी तरह के खतरों से दूर रखा जाये और सभी इसके आर्थिक अवसरों का पूरा-पूरा लाभ उठा सकें। समुद्री सुरक्षा के लिए यह रूख भारत के बढ़ते आर्थिक विकास के हिसाब से सही भी है। दक्षिण पूर्व एशिया में भारत की आर्थिक भागीदारी बढ़ रही है। यह सभी को पता है कि मलक्का जलडमरूमध्य भारत के व्यापार के लिये सबसे महत्वपूर्ण समुद्री रास्तों में से एक है। पिछले कई सालों से भारत की विदेश नीति का झुकाव भी हिंद महासागर इलाके में पूर्व की ओर गया है।
इससे जुड़ी भारत की सभी कोशिशों में अंडमान सागर को प्रमुखता मिली है क्योंकि यह मलक्का जलडमरूमध्य से होकर भारत-प्रशांत के बड़े जल क्षेत्र के साथ बंगाल की खाड़ी को जोड़ता है। यह उस महत्वपूर्ण जहाजरानी रास्ते से भी जुड़ा हुआ है जो दुनिया के ऊर्जा व्यापार के एक बड़े हिस्से के आनेजाने के लिए उपयोग किया जाता है। इसके अलावा हिंद महासागर तटवर्ती देशों में चीन की घुसपैठ और भारत-चीन के बीच समुद्री ताकत बढ़ाने की होड़ ने भी भारत को इस इलाके की सामरिक कीमत का एहसास दिला दिया है। इस तरह अंडमान सागर परिवहन और संचार के सबसे महत्वपूर्ण समुद्री मार्ग के लिये एक भू-रणनीतिक महत्व का प्रवेश द्वार बन जाता है। जिसके माध्यम से भारत पूर्वी इंडो-पैसिफिक में अपनी पहुंच को और बढ़ा सकता है।
अंडमान सागर के रणनीतिक महत्व को देखते हुए दूसरी ताकतें भी इससे होकर भारत के समुद्री इलाके में घुस सकती हैं। इंडो-प्रशांत इलाके में प्रमुखता हासिल करने के भारत के प्रयासों को अंडमान इलाके की सुरक्षा पक्की करने से जोड़ा जाना अब जरूरी हो गया है। भारत ने कई उपायों से इस समुद्री इलाके में व्यवस्था बनाए रखने के लिए जिम्मेदार अंडमान और निकोबार त्रि-कमान (एएनसी) की ताकत को बढ़ाने का काम शुरू कर दिया है।
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह को अक्सर “दुनिया में सबसे ज्यादा भू-रणनीतिक महत्व के द्वीप समूहों में से एक” के रूप में जाना जाता है। एएनसी इन इलाकों से गुजरने वाले जहाजों की निगरानी करने और मलक्का, सुंडा और लोम्बोक जलडमरूमध्य के माध्यम से जहाजों के आजादी से आनेजाने की गारंटी देने के लिए ज़िम्मेदार है। भारत ने अब इस कमांड की ताकत को बढ़ाने का फैसला किया है। इंडो-पेसेफिक इलाके में जहाजों के आजादी से आनेजाने को बनाये रखने के लिए भारत की गश्त को अब ज्यादा महत्व दिया जा रहा है। यह संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसी अन्य प्रमुख इंडो-पैसिफिक ताकतों के रूख के समान है। इन देशों ने “आजाद और खुला इंडो-पैसिफिक” बनाए रखने के लिए एक क्षेत्रीय भागीदार के रूप में भारत के सहयोग को बढ़ावा दिया है। हिंद महासागर इलाके के देशों में चीन की बढ़ती घुसपैठ भारत के चिंता का एक बड़ा कारण है। भारत ने इस पूरे इलाके में ऐसे काम शुरू किये हैं जैसा पहले कभी नहीं किया गया।
भारत ने इन द्वीपों में और सैनिक सुविधाओं को बढ़ाने के लिए 82 करोड़ डॉलर की एक 10 साल की योजना को अंतिम रूप दिया है। भारतीय वायु सेना के लड़ाकू विमानों के संभावित ठिकाने के रूप में कार निकोबार और कैंपबेल बे की पहचाना की गई है।
पिछले साल एएनसी ने तीनों सेनाओं के बीच तालमेल बढ़ाने के लिए एक साझा रसद केंद्र बनाने का फैसला किया था। जनवरी 2017 में भारत ने द डिफेंस ऑफ अंडमान ढंड निकोबार आईलैंड्स इक्सरसाइज (DANX-17) को पूरा किया। इस साल की शुरुआत में भारतीय नौसेना ने अपने तीसरे बेस INS कोहसा को नौसेना एयर स्टेशन (NAS) शिबपुर पर शुरू किया। म्यांमार के कोको द्वीपसमूह से निकटता के कारण इसे रणनीतिक लाभ की एक प्रमुख जगह माना जा रहा है। चीन ने कोको द्वीप के नजदीक ही भारतीय मिसाइल लॉन्च की निगरानी का केंद्र बना रखा है। एएनसी आस-पास के देशों में मानवीय सहायता और आपदा राहत मिशन भी चलाता है।
खुद की क्षमताओं में सुधार करने के अलावा एएनसी ने कई द्विपक्षीय और बहुपक्षीय नौसैनिक अभ्यास भी किया है। इनमें थाईलैंड, म्यांमार और इंडोनेशिया और सिंगापुर-भारत समुद्री द्विपक्षीय अभ्यास शामिल हैं। ये सभी अंडमान सागर में और उसके आसपास के सागरों में किए गए थे। अंडमान सागर में एएनसी के प्रमुख बहुपक्षीय नौसैनिक अभ्यास “मिलन” (MILAN)-2018 में भारत-प्रशांत क्षेत्र के सोलह देशों केन्या, ओमान, तंजानिया, मॉरीशस, मालदीव, श्रीलंका, बांग्लादेश, म्यांमार, थाईलैंड, मलेशिया, सिंगापुर, इंडोनेशिया, कंबोडिया, वियतनाम और ऑस्ट्रेलिया ने हिस्सेदारी की। यह कमांड की बढ़ती ताकत का सबूत है, साथ ही यह अंडमान सागर के सामरिक महत्व को भी साफ दिखाता है।
मिलन अभ्यास में हिससा लेने वाली नौसेनाओं के बीच आपदा प्रबंधन में तालमेल को भी जगह दी गई। अंडमान सागर में कुदरती आपदाओं के संकट की आशंका को देखते हुए भारत के पास आसियान देशों के साथ सामूहिक आपदा प्रबंधन व्यवस्था बनाने की गुंजाइश है। एएनसी ने 2008 में नरगिस चक्रवाती के दौरान म्यांमार में मानवीय राहत कार्य किया था।
अंडमान सागर से भारत मलक्का जलडमरूमध्य से आगे भी अपने प्रभाव को बढ़ा सकता है। भारत का ध्यान अभी पूरी तरह से समुद्री नियंत्रण पर ही है और अन्य प्राथमिकताओं तक नहीं फैला है। कमांड को गैर-पारंपरिक सुरक्षा खतरों से निपटने के लिए भी समर्थ बनाया जाना जरूरी है। इसके अलावा, इसे आगली कतार के बेस के तौर पर विकसित करने के लिए दिये गये संसाधन अभी पर्याप्त नहीं हैं। एएनसी की समुद्री खुफिया क्षमता का भी पूरा उपयोग अभी नहीं किया गया है। यदि इसे ठीक ढंग से विकसित किया जाता है, तो यह भारत को मलक्का जलडमरूमध्य में पनडुब्बी गतिविधियों की जानकारी देगा। हाल ही में इन द्वीपों के पास चीनी नौसेना की पनडुब्बियों के देखे जाने के बाद इस पर ध्यान दिया जा रहा है। भारत को अगर भू-रणनीतिक रूप से अंडमान सागर की पूरी क्षमता का उपयोग करना है तो उसे समय का लाभ उठाने और अंडमान सागर में अपने सैन्य ताकत बढ़ाने के प्रयासों को तेज करने की जरूरत है।